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विधानसभा चुनाव › बिहार चुनाव २०२० बिहार चुनाव: आसान नहीं है राजद-कांग्रेस की राह, JDU की भूमिका सबसे अहम, LJP के पक्ष में नहीं हैं चुनावी आंकड़े
बिहार चुनाव: आसान नहीं है राजद-कांग्रेस की राह, JDU की भूमिका सबसे अहम, LJP के पक्ष में नहीं हैं चुनावी आंकड़े
बिहार विधानसभा चुनाव के लिए सभी राजनीतिक दल मैदान में उतर चुके हैं। चुनाव प्रचार भी जोर पकड़ रहा है। सभी पार्टियों और गठबंधनों को अपनी जीत का भरोसा है। पर बिहार चुनाव के आंकड़े बताते हैं कि यह लड़ाई आसान नहीं है। सत्ता की दहलीज तक पहुंचने के लिए कांग्रेस और राजद को पिछले विधानसभा चुनावों के मुकाबले बहुत अच्छा प्रदर्शन करना होगा।
विधानसभा चुनाव में दो बड़े गठबंधन मैदान में हैं। सत्तारुढ़ जेडीयू-भाजपा और राजद व कांग्रेस गठबंधन अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। पर इन दोनों गठबंधनों के वोट प्रतिशत में लगभग दो गुणा का अंतर है। लोजपा एनडीए से अलग होकर चुनाव लड़ रही है, इसके बावजूद पिछले चुनावों में मिले वोट प्रतिशत के आंकड़ों में जेडीयू-भाजपा मजबूत नजर आती है।
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जनता दल (यूनाइटेड) की भूमिका बिहार चुनाव में सबसे अहम होती है। पिछले पंद्रह वर्षो में हुए विधानसभा और लोकसभा चुनाव के आंकड़े बताते हैं कि जेडीयू हमेशा पंद्रह से बीस फीसदी वोट हासिल करती रही है। यह वोट प्रतिशत राजद- कांग्रेस के साथ मिल जाए, तो वह गठबंधन सत्ता तक पहुंच जाती है। भाजपा-लोजपा के साथ मिल जाए, तो एनडीए सत्ता में आ जाता है।
लोजपा चुनाव में अकेले किस्मत आजमा रही है। पार्टी ने १४३ सीट पर अपने उम्मीदवार खड़ा करने का ऐलान किया है। एक साल पहले वर्ष २०१९ में हुए लोकसभा चुनाव में जेडीयू, भाजपा और लोजपा एक साथ चुनाव लड़े थे। उस वक्त एनडीए को ५४ फीसदी वोट मिले थे। जबकि कांग्रेस और राजद गठबंधन के हिस्से में करीब २४ फीसदी वोट आए थे।
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ऐसे में लोजपा अकेले चुनाव लड़कर जेडीयू को कितना नुकसान पहुंचाएगी, इसका आंकलन करना तो मुश्किल है, क्योंकि विधानसभा में लोजपा का प्रदर्शन २००५ के बाद कमजोर हुआ है। फरवरी २००५ में हुए चुनाव में लोजपा को २९ सीट मिली थी, पर कुछ माह बाद दोबारा हुए चुनाव में पार्टी सिमटकर १० सीट पर रह गई। इसके बाद २०१० में तीन और २०१५ के विधानसभा चुनाव में लोजपा के सिर्फ दो उम्मीदवार जीतकर विधानसभा पहुंचे थे।
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